झूठ को पर्दे ओढ़ाकर शान से खड़ी की सबने सच्चाई है
फिर उसी झूठ के खिलाफ ये जाने कैसी लड़ाई है
मन में सबके एक आक्रोश है, दिल हो गया बेहोश है
फिर उसी झूठ के खिलाफ ये जाने कैसी लड़ाई है
न सूरज उगने का उत्साह है न अस्त होने पर मन निराश है
जिसके होने की खुशी भी नही, उसके होने की सबको आस है
कुछ सैनिक बूढ़े थे वो भी थक चुके से है
कुछ लड़ रहे बेचारे लग रहे मन से रुक चुके से है
कुछ में हिम्मत की बूँदे बाकी है
वही देख सबमें विजय की आस फिर झाँकी है
झूठ को पर्दे ओढ़ाकर शान से खड़ी की सबने सच्चाई है
फिर उसी झूठ के खिलाफ ये जाने कैसी लड़ाई है
-A wellwisher
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